“किलमोड़ी” कई बीमारियों की दवा

by Mukesh Kabadwal
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kilmora plant

किलमोड़े की कटीली झाड़ियाँ उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रो में बहुत देखी जा सकती है, लेकिन जानकारी के आभाव में इसका उतना उपयोग नहीं है। कुछ लोग ही इसके उपयोग के बारे में जानते है।
यहां ये झाड़ियों सीढ़ीदार खेतो की मेड़ो पर अपने आप उग जाती है। इनकी ऊंचाई 3 से 6 फ़ीट तक होती है। किलमोड़ी की जड़ से ही इसमें कई शाखाएँ निकल जाती है। इसकी शखाऍ पतली कठोर होती है तथा इसमें कटीली पत्तिया भी होती है। इसकी शाखा को तोड़ने पर अंदर से पीला रंग दिखता है। इसमें खिलने वाले पुष्प गुच्छ का रंग पीला व बाद में होने वाले फल का रंग बैगनी होता है।
किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद देते हैं। दाद, खाज, फोड़े, फुंसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में ही है।

किलमोड़ी
संस्कृत नाम दारुहरिद्रा
हिंदी नामदारुहलदी
अन्य नामकिनगोड़ तोतर
लैटिन नामberiberis aristata
पुष्प कालअप्रैल -मई
फल कालजुलाई -अगस्त
उपयोगी भागशाखा, जड़ ,फूल ,फल ,कांटेदार पत्तियाँ
किलमोड़े के नाम व फल फूल का समय

डॉक्टर्स कहते हैं कि अगर आप दिनभर में करीब 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किलमोड़ा के फल और पत्तियां एंटी ऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एंटी ऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। किलमोडा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों और पर्यवरण प्रेमियों ने इसके खत्म होते अस्तित्व को लेकर चिंता जताई है। इसके साथ किलमोड़े के तेल से जो दवाएं तैयार हो रही हैं, उनका इस्तेमाल शुगर, बीपी, वजन कम करने, अवसाद, दिल की बीमारियों की रोक-थाम करने में किया जा रहा है।

आम तौर पर ये पेड़ उपेक्षा का ही शिकार रहा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पेड़ृ से दुनियाभर में जीवन रक्षक दवाएं तैयार हो रही हैं। किलमोड़े की कटीली झाडिया से तैयार हुए तेल का इस्तेमाल कई तरह की दवाएं बनाने में किया जाने लगा है। कुछ लोगों ने किलमोड़े को कमाई का जरिया बना लिया है।  बागेश्वर के एक शख्स भागीचंद्र टाकुली बीते डेढ़ दशक से जड़ी-बूटियों के संरक्षण में जुटे हैं। उन्होंने हाल ही में इसके पौधे से तेल तैयार किया है। किलमोड़े की सात किलो लकड़ियों से करीब 200 ग्राम तेल तैयार होता है। इस तेल की एक अच्छी खासी कीमत भागीचंद्र टाकुली को मिल जाती है। दवाओं के लिए तैयार होने वाला इसका सबसे ज्यादा हिमाचल से भेजा जाता है। सदियों से उपेक्षा का शिकार हो रहा ये पौधा बड़े कमाल का है। आजकल इसके फलो से निर्मित जूस भी बाजारों मैं उपलब्ध है।

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