क्या जोशीमठ में आयी आपदा के बारे में इतिहास में पहले से ही लिखा जा चुका था

by Ranjeeta S
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जोशीमठ में आयी आपदा के बारे में इतिहास में पहले से ही लिखा जा चुका था, इसका जवाब है हाँ इतिहास के पन्नों में जोशीमठ के भविष्य के बारे में पहले से ही लिखा जा चुका था, आईये इसको विस्तार से बताते हैं।

जोशीमठ 

जोशीमठ एक पवित्र शहर है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। समुद्र स्‍तर से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं से घिरा हुआ है। यह स्‍थल हिंदू धर्म के लोगों के लिए प्रतिष्ठित जगह है और यहां कई मंदिर भी स्‍थापित हैं। जोशीमठ, आदि शंकराचार्य द्वारा 8 वीं सदी में स्‍थापित किए जाने वाले चार मठों में से एक हैं।

जोशीमठ का इतिहास

जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है, जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ भी कहते हैं। इसे वर्तमान 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।जोशीमठ के इतिहास के अनुसार पांडुकेश्वर नामक स्थान में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी।

जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। पौराणिक समय में एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसायी। वासुदेव कत्यूरी वंश का संस्थापक था, जिसने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया। लेकिन फिर भी हिंदुओं के लिये एक धार्मिक स्थल के रूप में जोशीमठ आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ।

जोशीमठ से जुड़ी भविष्यवाणी 

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित जोशीमठ धाम को केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का मुख्यद्वार माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में जोशीमठ में आयी आपदा जिससे जोशीमठ की जमीन में दरारें, बढ़ रहे भूस्खलन और जोशीमठ नीचे धंसने ने सभी को चिंता में डाल दिया।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर में मौजूद कई धार्मिक ग्रंथों में कुछ ऐसी घटनाएं होने की भविष्यवाणी युगों पहले ही किए जा चुके हैं। इन धार्मिक पुस्तकों में बताया गया है, भविष्य में इस स्थान पर भूकंप, सूखा, प्रलय इत्यादि आएंगे। साथ ही यह भी बताया है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की मूर्ति धीरे-धीरे खंडित हो जाएगी और बद्रीनाथ व केदारनाथ जैसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल लुप्त हो जाएंगे।

बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए जोशीमठ को ही मुख्य द्वार कहा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जोशीमठ से बद्रीनाथ धाम केवल 45 किलोमीटर और केदारनाथ धाम महज 50 किलोमीटर दूर है। महाभारत काल से है इस पवित्र धाम का अस्तित्व रामायण एवं महाभारत काल से ही केदारनाथ धाम के अस्तित्व को धर्म ग्रंथों में बताया गया है। महाभारत के युद्ध में महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडवों को इसी तीर्थ स्थल पर पूजा-पाठ करने की सलाह दी थी।

देवतागण भी इसी तीर्थ स्थल पर भगवान शिव के दर्शन के लिए यात्रा करते हैं। महान धर्मगुरु आदिशंकराचार्य, राजा विक्रमादित्य, राजामिहिर भोज ने भी इस चमत्कारी तीर्थस्थल का जीर्णोद्धार कराया था। बद्रीनाथ के विषय में यह बताया जाता है कि इस पवित्र धाम की स्थापना भगवान विष्णु के द्वारा की गई थी। इसी स्थान पर भगवान विष्णु 6 महीने के लिए आराम करते हैं। यही कारण है कि सृष्टि का बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। साथ ही यह मान्यता भी है कि यह स्थान माता पार्वती एवं भगवान शिव का पहला निवास स्थान था।

जोशीमठ को लेकर कई तरह की भविष्यवाणी की जा रही है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि कलियुग में श्रद्धालु बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएँगे। लोक मान्यताओं के मुताबिक, हिंदू पुराणों में बद्रीनाथ धाम को लेकर एक चौंकाने वाली भविष्यवाणी की गई है। स्कंदपुराण में युगों पहले महर्षि वेदव्यास ने लिखा था कि कलियुग में बद्रीनाथ धाम अपनी जगह से अचानक गायब हो जाएगा।

जोशीमठ का नृसिंह मंदिर जो कि जोशीमठ में स्थित है। मंदिर में भगवान नृसिंह की बहुत पुरानी प्रतिमा है। भगवान की प्रतिमा को लेकर कई तरह की मान्यताएँ हैं। बताया जाता है कि नृसिंह भगवान की एक भुजा सामान्य है, जबकि दूसरी काफी पतली है। यह भुजा साल दर साल और पतली होती जा रही है। मान्यता के मुताबिक, जिस दिन नृसिंह भगवान की पतली हो रही भुजा टूट कर गिर जाएगी, उस दिन नर-नारायण पर्वत एक हो जाएँगे जिससे बद्रीनाथ धाम के मार्ग बंद हो जाएंगे।

यह वही नर-नारायण पर्वत है, जिसका उल्लेख स्कंदपुराण में भी किया गया है। यदि यह भविष्यवाणी सच हो जाती है, तो कलयुग में भक्त भगवान बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएँगे, जहाँ वह वर्तमान में विराजमान हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नर-नारायण पर्वत के एक हो जाने से बद्रीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा। ठीक उसी समय हिमालय की गोद में एक नया धाम प्रकट होगा, जिसे पुराणों में भविष्य बद्री का नाम दिया गया है। यहाँ बद्रीनाथ की तरह साक्षात भगवान विष्णु का वास होगा।

कहा जा रहा है कि भविष्य बद्री के बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, एक चट्टान जमीन से खुद ब खुद निकल रही है। ऋषि वेदव्यास ने जिस जगह पर भविष्य बद्री धाम की भविष्यवाणी की थी, ठीक उसी जगह पर यह धाम उभर रहा है। इस समय कुछ ऐसी ही घटनाएँ हो रही हैं, जो बद्रीनाथ धाम के समय पर हुई थीं। दावा किया जा रहा है कि उस शिला में भगवान विष्णु का अक्स उभर रहा है। जब त​क भगवान नृसिंह का वजूद जोशीमठ में है, तभी तक बद्रीनाथ सुरक्षित है। बद्रीनाथ की तरह भविष्य बद्री की स्थापना भी आदि शंकराचार्य ने की थी।

 

 



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