इस मंदिर में प्रकट होती हैं मां काली,हाटकालिका मंदिर गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ उत्तराखंड

by Pooja A
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hatkalika maa madir
उत्तराखंड (Uttarakhand) को देवभूम‍ि भी कहा जाता है, इसके कई कारण हैं, यहां पर कदम-कदम पर भगवानों का वास है, वहीं इस पूरे प्रदेश की मह‍िमा ही दैवीय हैं, हाटकालिका मंदिर उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट शहर में स्थित हैं। गंगोलीहाट पिथौरागढ़ जिले की तहसील और उपमंडल मुख्यालय है। गंगोलीहाट देवी काली की हाट कालिका के शक्ति पीठों के लिए जाना जाता है। यंहा से 12 किलोमीटर दूर पाताल भुवनेश्वर मंदिर स्थित हैं। हाटकालिका का यह मंदिर माँ महाकाली माता को समर्पित भव्य आस्था और विश्वास का मंदिर है, हाटकालिका मंदिर घने देवदार के जंगलों के बीच में स्थित है।

 

माँ हाटकालिका मंदिर में दूर दूर से श्रद्धालु लोग आकर देवी काली माता के चरणों के दर्शन करते है। गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका मंदिर के बारे में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है, प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार गुरु शंकराचार्य ने महाकाली माता का यह शाक्तिपीठ कुमाऊँ मंडल में भ्रमण करते समय स्थापित किया था।

हाटकालिका मंदिर गंगोलीहाट का इतिहास

माँ हाटकालिका मंदिर का इतिहास इस प्रकार है, यह माना जाता है कि महाकाली माता ने पश्चिम बंगाल से इस जगह को अपने घर से स्थानांतरित कर दिया था और तब से इस क्षेत्र में लोकप्रिय देवी के रूप में पूजी जाती है। गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित यह शक्तिपीठ हजार वर्ष से अधिक पुराना है, देवी की शक्ति के अनुसार यह माना जाता है कि प्राचीन काल से इस मंदिर स्थल पर एक सतत पवित्र आग जलती है।

हाटकालिका मंदिर गंगोलीहाट की मान्यताएँ

माँ हाटकलिका मंदिर के मान्यता के अनुसार, हाटकलिका माँ का रात में डोला चलता है। इस डोले के साथ माँ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले को छू ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है।

हाट कालिका मंदिर के बारे बताया जाता है कि यहां पर मां काली विश्राम करती है। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का विस्तर लगाया जाता है। बताया जाता है कि सुबह में इस विस्तर पर सिलवटें पड़ी होती हैं, जो संकेत देती है कि यहां पर किसी ने विश्राम किया था। बताया जाता है कि जो भी महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।
उत्तराखंड कुमाऊं रेजिमेंट की अराध्य देवी हैं माँ हाटकालिका माता बताया जाता है, कि हाटकालिका मंदिर में विराजमान महाकाली माता इंडियन आर्मी की कुमाऊँ रेजिमेंट की आरध्य देवी हैं। बताया जाता है कि इस रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाते हैं तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करते हैं। यही कारण है कि इस मंदिर के धर्मशालाओं में किसी न किसी आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाते हैं।

सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में हुई थी महाकाली की मूर्ति की स्थापना बताया जाता है, कि 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में महाकाली माता की मूर्ति की स्थापना हुई थी। बताया जाता है कि ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद कुमाऊँ रेजिमेंट ने साल में 1994 में बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी।

मंदिर में मां का रोज लगता है बिस्तर

कुमाऊं रेजिमेंट ने यहां पर अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ यहां पर गेस्ट हाउस भी बनाया है, जहां भक्तों को रात्रि विश्राम की सुविधा मिलती है. मान्यता है कि मंदिर के अंदर रात्रि भोज के बाद माता का शयनकक्ष में बिस्तर लगाया जाता है और रात्रि में मुख्य द्वार पर ताले लगाए जाते हैं. सुबह की आरती के समय जब पुजारी मंदिर के कपाट खोलते हैं तो बिस्तर सिमटा मिलता है. यह प्रतिदिन देखा जा सकता है. कहा जाता है कि माता प्रतिदिन मंदिर में आती हैं।

क्या बोले श्रद्धालु

पुजारी दुर्गा दत्त ने बताया नवरात्रि में जो महाकाली के दस दिन महाव्रत रखते हैं और यहां दर्शन के लिए आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. भिवाड़ी से आए माता के एक भक्त गिरीश चंद्र जोशी ने कहा कि माता की उन पर असीम अनुकंपा है. मुझे जब भी समय मिलता है मैं यहां आता हूं. यहां आकर मुझे बड़ी शांति मिलती है. उन्होंने कहा कि जो भी कार्य यंहा किया जाता है श्रद्बानुसार किया जाता है।

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