हाटकालिका मंदिर गंगोलीहाट का इतिहास
हाटकालिका मंदिर गंगोलीहाट की मान्यताएँ
माँ हाटकलिका मंदिर के मान्यता के अनुसार, हाटकलिका माँ का रात में डोला चलता है। इस डोले के साथ माँ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले को छू ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है।
सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में हुई थी महाकाली की मूर्ति की स्थापना बताया जाता है, कि 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में महाकाली माता की मूर्ति की स्थापना हुई थी। बताया जाता है कि ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद कुमाऊँ रेजिमेंट ने साल में 1994 में बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी।
मंदिर में मां का रोज लगता है बिस्तर
कुमाऊं रेजिमेंट ने यहां पर अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ यहां पर गेस्ट हाउस भी बनाया है, जहां भक्तों को रात्रि विश्राम की सुविधा मिलती है. मान्यता है कि मंदिर के अंदर रात्रि भोज के बाद माता का शयनकक्ष में बिस्तर लगाया जाता है और रात्रि में मुख्य द्वार पर ताले लगाए जाते हैं. सुबह की आरती के समय जब पुजारी मंदिर के कपाट खोलते हैं तो बिस्तर सिमटा मिलता है. यह प्रतिदिन देखा जा सकता है. कहा जाता है कि माता प्रतिदिन मंदिर में आती हैं।
क्या बोले श्रद्धालु
पुजारी दुर्गा दत्त ने बताया नवरात्रि में जो महाकाली के दस दिन महाव्रत रखते हैं और यहां दर्शन के लिए आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. भिवाड़ी से आए माता के एक भक्त गिरीश चंद्र जोशी ने कहा कि माता की उन पर असीम अनुकंपा है. मुझे जब भी समय मिलता है मैं यहां आता हूं. यहां आकर मुझे बड़ी शांति मिलती है. उन्होंने कहा कि जो भी कार्य यंहा किया जाता है श्रद्बानुसार किया जाता है।