देवभूमि उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाने वाला सातों आठों पर्व

539 views


birud ashtami

देवभूमि उत्तराखंड को देवों की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है यहां की संस्कृति सभ्यता की तो बात ही अलग है। पूरे साल भर में देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल में अनेक प्रकार के लोकपर्व मनाए जाते है उसी क्रम में एक लोकपर्व है सातों आठों। जिसे बिरूड़ पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि यह एक ऐसा लोकपर्व है जो पांच या सात प्रकार के भीगे हुए अंकुरित अनाजों  से सम्बन्धित है। इस लोकपर्व की शुरुआत भाद्रपद की पंचमी से हो जाती है। भाद्रपद माह की पंचमी को घरों में महिलाएं एक तांबे के बर्तन में पांच या सात प्रकार के अनाजों को भिगो कर रख दिया जाता है। इस दिन को कुमाऊनी में बिरूड़ पंचमी कहा जाता है। भाद्रपद माह की सप्तमी अष्टमी को सातों आठों पर्व मनाया जाता है।

वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड में हर लोक पर्व का अपना एक वैज्ञानिक महत्व होता है क्योंकि ये अनाज औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं स्वास्थ्य के लिए भी अति लाभप्रद होते हैं। इस मौसम में इन अनाजों को खाना अति उत्तम माना जाता है इसीलिए इस मौके पर इन्हीं अनाजों को प्रसाद के रूप में बांटा एवं खाया जाता है।

भाद्रपद माह की सप्तमी को महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती है और सोलह श्रृंगार करती है। और फिर माता पार्वती की आकृति बनाई जाती है और फिर उस आकृति को डलिया के बीच में थोड़ी सी मिट्टी रख कर स्थापित कर दिया जाता है। उसके बाद माता गौरी को नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते है। फिर माता गौरी का श्रृंगार किया जाता है। उसके बाद महिलाएं गमरा सहित डलिया को सिर पर रखकर लोकगीत गाते हुए गांव में वापस आती हैं और माता गौरी को गांव के ही किसी एक व्यक्ति के घर पर पंडित जी द्वारा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है।

फिर पंचमी के दिन भिगोए गए पांचों अनाजों के बर्तन को नौले में ले जाकर उन अनाजों को पानी से धोया जाता है। इन्हीं बिरूडों से माता गौरी की पूजा अर्चना की जाती है। इस अवसर पर शादीशुदा सुहागिन महिलाएं गले व हाथ में पीला धागा बांधती हैं। यह अखंड सुख-सौभाग्य व संतान की लंबी आयु की मंगल कामना के लिए बांधा जाता है।

मान्यता है कि इस दिन माता गौरी महादेव से रूठ कर अपने मायके अा जाती है जिस कारण से अगले दिन अष्टमी को महादेव  माता गौरी को मनाने आते है। इस दिन भी महिलाएं सज सवर कर सोलह श्रृंगार कर महादेव की आकृति का निर्माण के डलिया में रखती है और पूरे गांव का भ्रमण कर पण्डित के मंत्रों उच्चारण के साथ माता गौरी के मूर्ति के पास स्थापित कर दिया जाता है। माता गौरी को दीदी और महादेव को जीजाजी के रूप में पूजा जाता है साथ ही उनको फल और पकवान भी अर्पित किए जाते है।
इसी तरह अगले तीन चार दिन महादेव और माता पार्वती की पूजा अर्चना और नाच गीत में हर्षोल्लास के साथ बीत जाते है। तत्पश्चात माता पार्वती और महादेव को स्थानीय मंदिर में ले जाया जाता है जहां उनकी पूजा अर्चना कर विसर्जित किया जाता है। सातों आठों पर्व कुमाऊं और गढ़वाल में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते यह लोक पर्व गांवों में  सरल तरीके से और समाजिक दूरी का पालन करते हुए मनाया गया।

उत्तरापीडिया के अपडेट पाने के लिए फ़ेसबुक पेज से जुड़ें।



Related Articles

Leave a Comment

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.