अल्मोड़ा लाला बाजार की यादें

by Rajesh Budhalakoti
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almora lala bazar

अब धीरे धीरे हल्द्वानी की सार पड़ती जा रही है।

बात बात मे अब शिमला मे ऐसा, शिमला मे वैसा कम निकलता है, शिमला मे जैसा भूल करअब हल्द्वानी मे कैसा ये ज्यादा महत्वपूर्ण होते जा रहा है। पुराने बहुत से सहपाठी एवम् मित्र, सेवा निवृति के उपरांत यही आकर बस गए हैं। उनसे मुलाकात होने पर बीता समय मानो लौट आता है।

बातों, यादो और पुरानी मुलाकातो को याद क़र दिन निकल जाता है, और याद आती है अल्मोड़ा की लाला बाजार, नैनीताल का फ्लैट या शिमला की माल रोड जहाँ के एक चक्कर मे कई मित्रो से एक जगह पर मुलाकात हो जाती थी और वक्त कम पड़ जाया करता था।

वो शाम होने पर बन सवर कर निकल पड़ना, पितदा की पान की दूकान के पास तय समय पर मित्रो का मिलना, पितदा की दूकान से लोहे के शेर तक बेमतलब घूमना, एक चककर के बाद दूसरा चककर लगाना, बड़े बुजुर्गो की आँखों से बच कर निकलना, पैसे मिलाकर बसंतदा की दूकान पर चाय पीना, शतरंज की एक एक बाजी और घर वापसी। समय को मानो पंख लग जाते थे, कब 7 बज जाते पता ही नहीं चलता।

समय और बढती आबादी ने अब अल्मोड़ा की लाला बाजार का वो स्वरुप छीन लिया है, जैसे हमारे रूप स्वरुप ऊर्जा मे परिवर्तन हुआ वैसे ही अल्मोड़ा की लाला बाजार भी बदल गयी। अब वो गरिमामयी व्यक्तित्व वाले पुराने बुजुर्ग लाला बाजार मे दिखाई नहीं देते।

अब उन पुरानी दुकानों का महत्त्व और रसूख लगभग समाप्तप्राय है। जहां से कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति प्रभावित होती थी, बहुआयामी प्रतिभा के धनी और प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रो में अपना नाम रखने वाले राजनेता, ब्यूरोक्रेट, फ़ौजी अफसर, प्रोफेसर अब लाला बाजार से लुप्त हो गए है। सिर्फ दैनिक जीवन की वस्तुए ली और भीड़ के रेले से बच कर वापस घर, यहाँ अब भीड़ बहती है। भीड़ के रेले आते है संभल कर चलना पड़ता है, लाला बाजार में सैर अब बीते दिनों की बात हो गयी है।

समय के साथ लाला बाजार का भी रूप रंग परिवर्तित हुआ है, पर परिवर्तन सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। बाजार से ख्याति प्राप्त बाल सिंगोड़ी की दुकाने गायब, जगह जगह बाजार घेर बिहारी भाइयो की सब्जी की दुकाने, कोइ नयापन नहीं, अतिक्रमण से उपजा संकरापन, बाजार मे बहता नालियो का गन्दा पानी, जगह जगह कूड़े के ढेर, पान की पीक, फिसलने वाले पत्थर और आवारा कुत्ते। उत्तराखंड बनने के बाद तो कही कोइ सुनवाई भी नहीं। नेता देश विदेश की समस्या सुलझा रहे हैं। अफसर खा रहे है और अपनी गद्दी बचा रहे है और एक पुराना सांस्कृतिक नगर अपना स्वरूप खोता जा रहा है


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