उठने, टूटने और गिर के दुबारा उठने की प्रेरणास्पद कहानी

by Yashwant Pandey
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साल 2011
मैं एक जर्मन कंपनी के मुंबई ऑफिस में पोस्टेड था। महाराष्ट्र और गोवा का सेल्स देखता था। पहली दफा मुंबई मार्केट पहुंचा था, और मुंबई की तेज जिंदगी के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहा था। जहां अफ्रीका में लोगों के पास में समय था, और सब कुछ आराम से होता था, मुंबई में बिल्कुल भी समय नहीं होता था, और लोग हमेशा भागते ही रहते थे। मैं भी मुंबई की सड़कों पर भागना सीख रहा था। मुंबई में सर्वाइव करने के लिए आपको मुंबईकर बनना ही पड़ेगा। तेज रफ्तार की जिंदगी जीने की आदत डालनी पड़ेगी।
अंधेरी वेस्ट में मेरी मुलाकात हुई एक सज्जन से, लगभग 65 साल के आसपास उम्र, लेकिन 65 साल की उम्र में भी वेलमेंटेंड और स्मार्ट थे। बिल्कुल साफ सुथरे और बेहतरीन कपड़े पहनते थे। करीने से कटे हुए बाल, चमचमाते जूते, और बेहद खूबसूरत घड़ी, उनकी पहचान हुआ करती थी। उनके पास घड़ियों का काफी कलेक्शन हुआ करता था। उनकी एक और खासियत थी, उनके पास मैं जब भी जाता तो, वे लस्सी छाछ नारियल पानी इत्यादि जरूर ऑफर करते थे
धीरे-धीरे अच्छी जान पहचान हो गई, उनके परिवार के बारे में पता चला। उनकी दो बेटियां और एक बेटा था। दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी। बेटे की ओर से अक्सर चिंतित रहते थे। वह नालायक था, अक्सर घर से गायब रहा करता था। उनके साथ बिजनेस के अलावा भी काफी इधर-उधर की भी बातें हुआ करती थी। एक दिन उनका फोन आया, मुझसे मिलना चाहते थे। मैं उनकी स्टोर पर पहुंचा, पहली बार मैंने उन्हें बेतरतीब से कपड़े पहने हुए देखा। मैले कुचेले, बिना आयरन किये हुए कपड़े। बढ़ी हुई दाढ़ी, और ऐसा लग रहा था जैसे अचानक उनकी उम्र 10 वर्ष बढ़ गई है
मुझे देखते ही उनकी आंखों में आंसू आ गए। डबडबाई आंखों से उन्होंने कहा, मैं बर्बाद हो गया हूं। मेरा बेटा एक करोड रुपए लेकर फरार हो गया है। तीन दिन से ढूंढने की कोशिश कर रहा हूं, नहीं मिला है। पुलिस को उसकी आखिरी लोकेशन, जो उसके मोबाइल सिगनल्स को ट्रेस करने से पता चल पायी है, वह उत्तर प्रदेश नेपाल बॉर्डर की है। उसके बाद का पता नहीं चल रहा है। रोते हुए कहने लगे – “मैं बर्बाद हो गया, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं! मार्केट में चालीस साल की साख खत्म हो जाएगी, मुझ पर कोई भरोसा नहीं करेगा, काफी वेंडर्स को मुझे पैसे देने हैं। आपकी भी डिस्ट्रीब्यूटर के साढ़े तीन लाख देना है, कहकर वह सुबकने लगे। मैंने उन्हें सांत्वना देने की कोशिश की। लगभग आधे घंटे बाद बहुत थोड़ा संभल गए थे।
मैंने उन्हें यह समझाने में कामयाब रहा कि उन्होंने यह बिजनेस स्क्रैच से शुरू की थी, और स्वयं को इस लेवल तक पहुंचाया। अब वह दुबारा स्क्रैच से शुरू कर सकते हैं। आप वापस यहां पहुंच जाएंगे कम समय में ही। उनमें थोड़ी हिम्मत आई। उनका कहना था, वह अपने वेंडर्स का कैसे सामना करें!, समझ में नहीं आ रहा। मैंने कहा, आप सभी वेंडर के पास जाएं, और अपनी वस्तु स्थिति को स्पष्ट करें। साथ ही साथ यह भी बताएं कि, आप बिजनेस जारी रखेंगे, और जल्द से जल्द पैसे वेंडर्स को लौटाने की कोशिश करेंगे। साथ ही साथ अपने सभी कस्टमर्स को भी फोन करके बताएं, और कहें आपको उनकी मदद की जरूरत है, प्लीज मुझे मदद करें। ईश्वर पर भरोसा करें सब कुछ ठीक हो जाएगा। लगभग एक घंटा उनके साथ गुजार कर मैं वापस लौट गया।
लगभग 10 दिन के बाद मेरी उनसे दोबारा भेट हुई। उन्होंने अपने दोनों हाथ से मेरे दाहिने हाथ को पकड़ कर कहा, मैंने आपके कहे अनुसार मैं अपने सारे वेंडर्स और कस्टमरस से मिल लिया हूँ। जो मुंबई के बाहर थे, उनसे फोन पर बात की, और जो मुंबई में थे, उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर बात की। कुछ कस्टमरस ने पुरानी उधार के पैसे भी दिए हैं। उम्मीद है कि कम समय में ही मैं सभी वेंडर्स के पैसे चुका दूंगा। मैं उनसे हर सप्ताह मिलता रहता था। इस घटना के बाद तो जैसे उनके पैरों में पंख लग गए। वह काम के सिलसिले में पूना कोल्हापुर नासिक गोवा तक पहुंचने लगे। 65 साल की उम्र में भी उनके लिए दिन और रात बराबर थी, वह 24 घंटे काम पर होते थे
2012 में मैं दिल्ली चला गया, उन्होंने मेरे डिसटीब्यूटर्स के पैसे चुका दिए थे। और भी काफी वेंडरस के पैसे दे चुके थे। वह मेरे टच में रहते थे। 2013 में उनका फोन आया, बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने कहा मैंने सभी वेंडर्स के पैसे चुका दिए हैं, और मेरा बिजनेस भी ठीक-ठाक चल रहा है। मैं अब निश्चिंत होकर मर सकता हूं। मैंने कहा सर आप कम से कम 100 साल जियोगे, वह हंसने लगे। इधर उधर की बातें हुई, बेटे के बारे में पूछने पर उदास हो गए। बोले पता नहीं चला। और मैं भी अब निराश हो गया हूं। 2018 में उन्होंने बिजनेस बंद करके रिटायरमेंट ले लिया। हम आज भी टच में है। 65 साल से अधिक की उम्र में भी उनका स्ट्रगल करने का जज्बा गजब था। ईश्वर उन्हें लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें।
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